झालावाड़ क्यों प्रसिद्ध है?
झालावाड़, राजस्थान का एक खूबसूरत शहर है, जो अपनी समृद्ध इतिहास,
शानदार किलों और महलों, और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यह शहर हाड़ौती क्षेत्र का एक
महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां की संस्कृति और परंपराएं काफी समृद्ध हैं।
झालावाड़ की स्थापना 1791 ईस्वी में झाला जालिम सिंह द्वारा की गई थी, जो कोटा राज्य के दीवान थे। उन्होंने इसे 'छावनी उम्मेदपुरा'
के नाम से एक सैन्य छावनी के रूप में स्थापित किया था।
1838
में,
अंग्रेजों ने झालावाड़ को कोटा से अलग कर दिया और इसे एक
स्वतंत्र रियासत बना दिया,
जिसका शासन झाला मदन सिंह को सौंपा गया। झालावाड़ का नाम
इसके संस्थापक झाला जालिम सिंह के नाम पर पड़ा। यह क्षेत्र मालवा के पठार का
हिस्सा है,
इसलिए यहाँ की भूमि उपजाऊ है। झालावाड़ राजस्थान के
दक्षिणी-पूर्वी कोने में स्थित है, जो मध्य प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है।
झालावाड़ में घूमने की जगहें
गढ़ पैलेस: झालावाड़ का गढ़ पैलेस, जो किलेनुमा महल है,
शहर के बीचों-बीच स्थित है। यह चार मंजिला महल झालावाड़ के
अतीत की यादों को संजोए हुए है।
झालावाड़ का गढ़ पैलेस, जिसे झालावाड़ किला या सिटी पैलेस भी कहा जाता है, राजस्थान के झालावाड़ शहर के मध्य में स्थित एक शानदार
ऐतिहासिक धरोहर है। यह महल न केवल अपनी भव्य वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि झालावाड़ के इतिहास और संस्कृति का भी प्रतीक
है। गढ़ पैलेस का निर्माण 19वीं शताब्दी में महाराजा राणा मदन सिंह द्वारा शुरू किया
गया था। बाद में,
राजा पृथ्वीसिंह और राजा भवानी सिंह ने इसके निर्माण को
पूरा किया। इस महल ने झालावाड़ राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक केंद्र के रूप में
कार्य किया।
महल चार मंजिला है और इसमें सुंदर मेहराब, झरोखे, गुम्बद और
जटिल नक्काशी देखने को मिलती है। महल में तीन कलात्मक द्वार हैं जो इसकी सुंदरता
को और बढ़ाते हैं। दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जनाना महल और विभिन्न दरबार इस महल के प्रमुख भाग हैं। जनाना
ख़ास (महिलाओं का महल) अपनी दीवारों पर दर्पणों और उत्कृष्ट भित्तिचित्रों के लिए
विशेष रूप से प्रसिद्ध है,
जो हाड़ौती कला का एक बेहतरीन उदाहरण है।
राजकीय संग्रहालय🏬: झालावाड़ का राजकीय संग्रहालय राजस्थान के सबसे प्राचीन संग्रहालयों
में से एक है। यहां दुर्लभ चित्रों, पांडुलिपियों और प्राचीन मूर्तिशिल्पों का नायाब संग्रह है।
राजस्थान के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक है। यह
झालावाड़ के गढ़ पैलेस परिसर का ही एक भाग है। यह संग्रहालय झालाओं की समृद्ध
रियासत के इतिहास और संस्कृति को दर्शाता है। इस संग्रहालय की स्थापना 1915 ईस्वी में झालावाड़ के तत्कालीन महाराजा भवानी सिंह द्वारा
की गई थी। उस समय इसका नाम आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम था। यहाँ 8वीं से 18वीं शताब्दी
तक की अति सुंदर और कलात्मक मूर्तियाँ हैं। शिलालेख कक्ष में 5वीं से 19वीं शताब्दी तक
के शिलालेखों का संग्रह है,
जो उस समय के इतिहास और संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं। मुद्रा
कक्ष में सम्राट कनिष्क से लेकर मुगलों और झालावाड़ राज्य के शासकों की मुद्राओं
का संग्रह है। यह मुद्राओं का संग्रह उस समय की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को
समझने में मदद करता है। यहाँ प्राचीन और दुर्लभ पांडुलिपियाँ भी हैं, जो ज्ञान और विद्या के क्षेत्र में उस समय की प्रगति को
दर्शाती हैं। संग्रहालय में प्राचीन अस्त्र-शस्त्र भी प्रदर्शित हैं, जो उस समय के युद्ध कौशल और तकनीक का परिचय देते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर, झालावाड़ संग्रहालय में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते
हैं,
जिनमें देशी और विदेशी पर्यटक भाग लेते हैं। इस दौरान
संग्रहालय की दुर्लभ पेंटिंग और अन्य वस्तुओं को विशेष रूप से प्रदर्शित किया जाता
है।
झालरापाटन: झालावाड़ से कुछ ही दूरी पर स्थित झालरापाटन में कई प्राचीन
मंदिर हैं,
जिनमें सूर्य मंदिर सबसे प्रमुख है।
झालावाड़ का झालरापाटन एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से
महत्वपूर्ण शहर है,
जो झालावाड़ जिले में स्थित है। इसे "घंटियों का
शहर" (City
of Bells) भी कहा जाता है।
झालरापाटन का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है:
"झालर" जिसका अर्थ है मंदिरों में बजने वाली घंटियाँ, और "पाटन" जिसका अर्थ है शहर। यहाँ कई मंदिर होने
के कारण सुबह-शाम मंदिरों की घंटियों की आवाज़ गूंजती रहती है, इसी वजह से इसे झालरापाटन कहा जाता है।
गागरोन का किला: झालावाड़ से कुछ
दूरी पर स्थित है,
लेकिन गागरोन का किला अपनी ऐतिहासिक महत्ता के कारण
पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है। यह किला एक प्राचीन दुर्ग है और इसकी वास्तुकला
देखने लायक है।
गागरोन का किला एक जलदुर्ग है, यानी यह चारों तरफ से पानी से घिरा हुआ है। यह कालीसिंध और
आहू नदियों के संगम पर स्थित है, जो इसे एक
प्राकृतिक खाई प्रदान करती हैं। यह भारत के कुछ किलों में से एक है जिसकी कोई नींव
नहीं है। यह सीधे चट्टानों पर बना हुआ है, जो इसे और भी अनूठा बनाता है। 2013 में,
गागरोन के किले को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित
किया गया था। गागरोन के किले का निर्माण 12वीं शताब्दी में डोड राजा बीजलदेव द्वारा करवाया गया था।
भीमसागर बांध🚣: भीमसागर बांध एक लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट है। यहां का शांत
वातावरण और खूबसूरत दृश्य पर्यटकों को मोहित करते हैं।
मिट्टे शाह का मकबरा: यह मकबरा एक सुंदर वास्तुशिल्प का उदाहरण है और मुस्लिम
समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
झालावाड़ की खासियतें
हाड़ौती
कला: झालावाड़ हाड़ौती कला के लिए प्रसिद्ध है। यहां के महलों और
मंदिरों पर हाड़ौती कला के नमूने देखने को मिलते हैं।
संतरे की
खेती: झालावाड़ को राजस्थान का नागपुर भी कहा जाता है क्योंकि
यहां संतरे की खेती बड़े पैमाने पर होती है।
झालावाड़ में
कहा ठहरे ?
- होटल सोनी प्लाज़ा - यह होटल ₹990 प्रति रात की दर पर उपलब्ध है। और इसकी रेटिंग 4.3 है। कोंटेक 09414284764
- होटल इंद्रप्रस्थ रेसिडेंसी - यह 2-सितारा
होटल ₹1,030
प्रति रात की दर पर उपलब्ध है। इसकी रेटिंग 3.7 है। कोंटेक्ट नं. 09414595604
- होटल जै पैलेस - बेस्ट होटल इन झालावाड़
(Hotel
jai palace - Best Hotel In Jhalawar )- यह होटल ₹1,151 प्रति रात की दर पर उपलब्ध है। इसकी रेटिंग 4.4 है। Call -087709 65290
- होटल पिनक - यह होटल ₹1,193 प्रति रात की दर पर उपलब्ध है। इसकी रेटिंग 4.4 है।फ़ोन नं. 072978
42533
- होटल हेरिटेज - यह होटल ₹1,237 प्रति रात की दर पर उपलब्ध है। इसकी रेटिंग 3.7 है। Call- 094607
47769
आप अपनी पसंद और बजट के अनुसार इनमें से कोई भी होटल चुन
सकते हैं।
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