तमिलनाडु का
डिंडिगुल जिला इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा संगम है। यह अपनी समृद्ध
संस्कृति,
ऐतिहासिक स्थलों और मनोरम प्राकृतिक दृश्यों के लिए जाना
जाता है। आइए, डिंडिगुल के पर्यटन स्थलों के बारे में विस्तार से जानें:
डिंडिगुल
किला:
यह किला 17वीं शताब्दी में बनाया गया था और शहर के ऊपर एक चट्टानी
पहाड़ी पर स्थित है। यहां से पूरे शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
डिंडिगुल किला
दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक किला है। यह एक चट्टानी
पहाड़ी पर बना हुआ है और शहर के ऊपर से इसका एक शानदार दृश्य दिखाई देता है। यह
किला न केवल अपनी रणनीतिक स्थिति के लिए बल्कि अपनी वास्तुकला और इतिहास के लिए भी
प्रसिद्ध है।
डिंडिगुल किले
का निर्माण 17वीं शताब्दी में मुथु कृष्णप्पा नायककर ने करवाया था। इस किले ने कई शासकों को
देखा है और इसका उपयोग युद्ध के समय किले के रूप में किया जाता था। किले की
दीवारें इतनी मजबूत हैं कि दुश्मनों के लिए इसे फतह करना लगभग असंभव था।
डिंडिगुल किले
की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है। इसके विशाल द्वार, मजबूत दीवारें और कई मंदिर इसे एक अद्भुत वास्तुशिल्पीय
संरचना बनाते हैं। किले के अंदर कई मंदिर हैं जिनमें से सबसे प्रमुख है
गंगाधरेश्वर मंदिर।
गंगाधरेश्वर
मंदिर: यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी नक्काशीदार छत और
स्तंभ देखने लायक हैं।
रानी
रंगमहल: यह महल रानियों के रहने के लिए बनाया गया था और इसकी
दीवारों पर सुंदर चित्रकारी है।
हाथी का
द्वार: यह किले का मुख्य द्वार है और इसकी मजबूती देखकर आप दंग रह
जाएंगे।
जेलखाने:
इस किले में एक जेलखाना भी था जहां कैदियों को रखा जाता था।
आप किले के
प्रवेश द्वार पर जाकर वर्तमान शुल्क के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ
इंडिया (ASI) की वेबसाइट: ASI की वेबसाइट पर भी डिंडीगुल किले के प्रवेश शुल्क के बारे
में जानकारी उपलब्ध हो सकती है।
अबिरामी
अम्मन मंदिर:
यह मंदिर देवी
अबिरामी अम्मन को समर्पित है और नवरात्रि के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु
आते हैं।
डिंडीगुल का
अबिरामी अम्मन मंदिर दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू
मंदिर है। यह मंदिर देवी अबिरामी अम्मन को समर्पित है,
जिन्हें शक्ति का एक रूप माना जाता है। मंदिर अपनी भव्य
वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।
इस मंदिर का
निर्माण कब हुआ था, इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है। लेकिन यह माना जाता
है कि यह मंदिर बहुत पुराना है और इसे कई शासकों द्वारा बनवाया गया था। मंदिर को
कई बार पुनर्निर्मित किया गया है और इसकी वर्तमान संरचना 17वीं शताब्दी की है।
अबिरामी अम्मन
मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का गोपुरम
(द्वार) बहुत ही भव्य और रंगीन है। मंदिर के अंदर कई मंडप और हॉल हैं,
जहां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर की
दीवारों पर सुंदर मूर्तियां और चित्रकारी हैं।
अबिरामी अम्मन
मंदिर को शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि यहां देवी सती का
हृदय गिरा था। इस कारण से, यह मंदिर तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। देवी अबिरामी
अम्मन को संकटमोचन देवी माना जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से उनकी
पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
बेगमपुर मस्जिद:
बेगमपुर
मस्जिद का निर्माण कब हुआ था, इस बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि,
यह माना जाता है कि यह मस्जिद 18वीं शताब्दी के आसपास बनाई गई थी। इस मस्जिद का नाम बेगमपुर
गांव के नाम पर पड़ा है, जो कि डिंडीगुल के पास स्थित है।
बेगमपुर
मस्जिद की वास्तुकला दक्षिण भारतीय शैली से प्रभावित है। मस्जिद में एक बड़ा मुख्य
हॉल है,
जहां लोग नमाज अदा करते हैं। मस्जिद की दीवारों पर सुंदर
नक्काशी और चित्रकारी की गई है। मस्जिद का गुंबद और मीनार भी बहुत ही खूबसूरत हैं।
बेगमपुर मस्जिद मुस्लिम समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां लोग
नमाज अदा करने के लिए आते हैं। मस्जिद में कई धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित किए
जाते हैं।
सिरुमलाई
हिल्स:
यह हिल स्टेशन
डिंडिगुल के पास स्थित है और यहां का शांत वातावरण पर्यटकों को बहुत पसंद आता है।
डिंडीगुल की
सिरुमलाई हिल्स तमिलनाडु का एक खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्र है,
जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना
जाता है। यह पहाड़ी श्रृंखला पूर्वी घाट का हिस्सा है और डिंडीगुल शहर से लगभग 25
किलोमीटर दूर स्थित है। सिरुमलाई हिल्स में घने जंगल,
झरने, और मनोरम दृश्य हैं जो प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करते
हैं।
सिरुमलाई
हिल्स का इतिहास काफी पुराना है। इस क्षेत्र का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में
मिलता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान हनुमान ने संजीवनी बूटी लाने के लिए इस पहाड़ी को
उखाड़ा था। आज भी इस क्षेत्र में कई मंदिर और धार्मिक स्थल हैं।
सिरुमलाई
हिल्स में कई ट्रेकिंग रास्ते हैं जो आपको पहाड़ों के ऊपर ले जाते हैं। यहां से आप
पूरे क्षेत्र का मनोरम दृश्य देख सकते हैं।
कमाराज सागर झील:
यह झील 400 एकड़
में फैली हुई है और पश्चिमी घाट के शानदार दृश्य पेश करती है।
कमाराज सागर झील का निर्माण 1957 में हुआ था। इस झील का नाम तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस नेता और भारत के राष्ट्रपति रहे श्री कमलापति राजा
के नाम पर रखा गया है। इस झील का निर्माण सिंचाई और बिजली उत्पादन के उद्देश्य से
किया गया था। आप झील में नौका विहार का आनंद ले सकते हैं और आसपास के दृश्यों का
लुत्फ उठा सकते हैं। झील के आसपास कई तरह के पक्षी पाए जाते हैं। आप यहां पक्षी
देखने का आनंद ले सकते हैं।
डिंडिगुल
पहाड़ी:
यह पहाड़ी शहर का एक प्रमुख स्थलचिह्न है और यहां से पूरे
शहर का नज़ारा देख सकते हैं।
डिंडीगुल
पहाड़ी का इतिहास काफी पुराना है। इस क्षेत्र का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में
मिलता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान हनुमान ने संजीवनी बूटी लाने के लिए इस पहाड़ी को
उखाड़ा था। आज भी इस क्षेत्र में कई मंदिर और धार्मिक स्थल हैं।
डिंडीगुल
पहाड़ी में कई ट्रेकिंग रास्ते हैं जो आपको पहाड़ों के ऊपर ले जाते हैं। यहां से
आप पूरे क्षेत्र का मनोरम दृश्य देख सकते हैं। डिंडीगुल पहाड़ी में कई मंदिर हैं
जहां आप दर्शन कर सकते हैं।
श्री
कोट्टै मारियम्मन कोविल:
यह मंदिर 200 साल पुराना है और यहां की वास्तुकला देखने लायक है।
डिंडीगुल का
श्री कोट्टै मारियम्मन कोविल दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध
हिंदू मंदिर है। यह मंदिर देवी मारियम्मन को समर्पित है,
जिन्हें शक्ति का एक रूप माना जाता है। मंदिर अपनी भव्य
वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।
इस मंदिर का
निर्माण कब हुआ था, इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है। लेकिन यह माना जाता
है कि यह मंदिर बहुत पुराना है और इसे कई शासकों द्वारा बनवाया गया था। मंदिर को
कई बार पुनर्निर्मित किया गया है और इसकी वर्तमान संरचना 17वीं शताब्दी की है।
कोट्टै
मारियम्मन कोविल द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का
गोपुरम (द्वार) बहुत ही भव्य और रंगीन है। मंदिर के अंदर कई मंडप और हॉल हैं,
जहां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर की
दीवारों पर सुंदर मूर्तियां और चित्रकारी हैं।
देवी
मारियम्मन को रोगों से बचाने वाली देवी माना जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त
सच्चे मन से उनकी पूजा करते हैं, उनकी सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं। इस मंदिर में देवी
मारियम्मन को जल से संबंधित कई अनुष्ठान किए जाते हैं।
थाडिकोम्बु
पेरुमल मंदिर:
यह मंदिर
भगवान अलगर को समर्पित है।
इस मंदिर का
निर्माण कब हुआ था, इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है। लेकिन यह माना जाता
है कि यह मंदिर बहुत पुराना है और इसे कई शासकों द्वारा बनवाया गया था। मंदिर को
कई बार पुनर्निर्मित किया गया है और इसकी वर्तमान संरचना काफी प्राचीन है।
थाडिकोम्बु
पेरुमल मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर
का गोपुरम (द्वार) बहुत ही भव्य और रंगीन है। मंदिर के अंदर कई मंडप और हॉल हैं,
जहां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर की
दीवारों पर सुंदर मूर्तियां और चित्रकारी हैं।
सौंदरराज
पेरुमल को सौंदर्य और प्रेम के देवता माना जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त
सच्चे मन से उनकी पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह मंदिर दिव्य देशम
में से एक है, जो विष्णु के 108 मंदिरों में से एक है जिन्हें 12
अलवार संतों ने नलयिर दिव्य प्रबंधम में सम्मानित किया था।
अंजनेयर
मंदिर:
यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है और यहां हनुमान जी की पूजा होती है।
डिंडीगुल में
स्थित अंजनेयर मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर
है। यह मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। हनुमान
जी को भगवान राम के परम भक्त माना जाता है और उन्हें बल,
बुद्धि और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर में
हनुमान जी को भक्तों द्वारा विशेष रूप से पूजा जाता है।
इस मंदिर का
निर्माण कब हुआ था, इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है। लेकिन यह माना जाता
है कि यह मंदिर बहुत पुराना है और इसे कई शासकों द्वारा बनवाया गया था। मंदिर को
कई बार पुनर्निर्मित किया गया है और इसकी वर्तमान संरचना काफी प्राचीन है।
अंजनेयर मंदिर
द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का गोपुरम (द्वार)
बहुत ही भव्य और रंगीन है। मंदिर के अंदर कई मंडप और हॉल हैं,
जहां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर की
दीवारों पर सुंदर मूर्तियां और चित्रकारी हैं।
भगवान हनुमान
को बल,
बुद्धि और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि जो
भी भक्त सच्चे मन से उनकी पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस मंदिर में हनुमान जी
को जल से संबंधित कई अनुष्ठान किए जाते हैं।
सेंट
जोसेफ चर्च:
यह चर्च 19वीं शताब्दी में बनाया गया था और इसकी वास्तुकला यूरोपीय
शैली की है।
डिंडीगुल का
सेंट जोसेफ चर्च एक ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण कैथोलिक चर्च है। यह
चर्च 1866
और 1872 के बीच बनाया गया था और लगभग एक सदी पुराना है। डिंडीगुल
जिले में मौजूद सभी रोमन कैथोलिक चर्चों में यह चर्च सबसे पुराना है और इसलिए इस
क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है।
सेंट जोसेफ
चर्च का निर्माण 19वीं सदी के मध्य में हुआ था। इस चर्च का निर्माण ब्रिटिश
शासन के दौरान हुआ था और यह इस क्षेत्र में ईसाई धर्म के प्रसार में एक महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता था। यह चर्च न केवल एक धार्मिक स्थल है बल्कि यह स्थानीय लोगों के
लिए सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र है।
सेंट जोसेफ
चर्च की वास्तुकला यूरोपीय शैली की है। चर्च की इमारत पत्थर से बनी हुई है और
इसमें गोथिक शैली के तत्व देखने को मिलते हैं। चर्च का इंटीरियर बहुत ही सुंदर और
शांत है। चर्च में रंगीन शीशे की खिड़कियां, भित्तिचित्र और मूर्तियां हैं जो इसे एक आकर्षक स्थान बनाती
हैं।
डिंडीगुल में
बजट फ्रेंडली होटल की तलाश में है?
होटल्स |
Rating |
प्रति रात्रि किंमत |
कोंटेक्ट नं. |
Hotel AKMG – Classic (2-star
hotel) |
3.5 |
₹808 |
094864 09785 |
Dolphin Hotels Dindigul (3-star
hotel) |
3.5 |
₹868 |
087540 31791 |
DAWOOD RESIDENCY |
4.3 |
₹917 |
078680 08080 |
Venkateswar lodge |
3.7 |
₹927 |
|
L.R.R.TOWERS (LODGE) (2-star
hotel) |
3.5 |
₹969 |
0451 290 0339 |
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